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गणेश विसर्जन का महत्व और और इसके पीछे छिपा संदेश

संस्कृत शब्द 'विसर्जन' के कई अर्थ हैं। पूजा के संदर्भ में इसका अर्थ, पूजा के लिए इस्तेमाल की गई मूर्ति को सम्मान से पानी में विलीन करना है। गणेश चतुर्थी के दौरान, पूजा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मूर्ति को आध्यात्मिक तौर पर भगवान गणेश के रूप में देखा जाता है। अतः गणेश चतुर्थी की समाप्ति पर प्रतिमा को पानी में विसर्जित किया जाता है।

विसर्जन की तिथियाँ 

गणेश विसर्जन की शुरूआत गणेश चतुर्थी के अगले दिन से हो जाती है। इसके अलावा कुछ लोग तीसरे, पांचवें, सातवें, दसवें या ग्यारहवें दिन भी गणेश विसर्जन करते हैं।

  • दूसरों का सम्मान करना सिखाता है

हालांकि प्रतिमा को केवल एक व्यक्ति बनाता है लेकिन इसके पीछे कई लोगों की मेहनत लगी होती है। प्रतिमा को बनाने में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी की खुदाई मछुआरा करता है तथा कुम्हार इस मूर्ति को आकार देता है व पुजारी इसे गणेश के रूप में पूजता है। इस तरह हम टीमवर्क व परस्पर आदर सीखते हैं।

  • हमें याद दिलाता है कि जीवन अस्थायी है

गणेश की प्रतिमा को बडे प्यार से बनाया जाता है। यही प्यार व भक्ति इस मिट्टी की प्रतिमा को एक आध्यात्मिक शक्ति का आकार देते हैं। समय आने पर, इसे फिर प्रकृति को लौटा दिया जाता है। इसी तरह, हम भी मिट्टी के बने हैं और इस मिट्टी के शरीर में आत्मा वास करती है। और एक दिन, यह शरीर मिट्टी में विलीन हो जाता है।

  • हमें बताता है कि भगवान निराकार है

गणेश चतुर्थी के दौरान, हम मूर्ति में भगवान गणेश के आध्यात्मिक रूप को आमंत्रित करते हैं तथा अवधि समाप्त होने पर हम आदर से प्रभू से मूर्ति को छो़ड़ने की विनती करते हैं ताकि हम मूर्ति को पानी में विसर्जित कर सकें। इससे हमें पता चलता है कि भगवान निराकार है। अतः हम उनके दर्शन पाने, भजन सुनने व स्पर्श पाने के लिए एवं पूजा में चढाए जाने वाले फूलों की मेहक व प्रसाद पाने के लिए उन्हें एक आकार देते हैं।

  • जीवन का चक्र

विसर्जन की रीत, हमारे जीवन व मृत्यु के चक्र की प्रतीक है। गणेश की मूर्ति बनाई जाती है, उसकी पूजा की जाती है एवं फिर उसे अगले साल वापस पाने के लिए प्रकृति को सौंप दिया जाता है। इसी तरह, हम भी इस संसार में आते हैं अपने जीवन की जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं एवं समय समाप्त होने पर अगले जन्म में एक नए रूप के साथ जीते हैं। 5 हमें तटस्थता सिखाता है|


  • हमें तटस्थता सिखाता है

विसर्जन हमें तटस्थता के पाठ को सिखाता है। इस जीवन में मनुष्य को कई चीज़ों से लगाव हो जाता है और वो माया के जाल में फंस जाता है। लेकिन जब मृत्यु आती है तब हमें इन सारे बंधनों को तोड़ कर जाना पड़ता है। गणपति बप्पा भी हमारे घर में स्थान ग्रहण करते हैं और हमें उनसे लगाव हो जाता है। परंतु समय पूरा होते ही हमें उन्हें विसर्जित करना पडता है। इस तरह हमें इस बात को समझना होगा कि हम जिन्हें जिंदगी भर अपना समझते हैं असल में वो हमारी होती ही नहीं हैं

  • सांसारिक वस्तुओं से जुडे मोह को तोडते हैं

विसर्जन हमें यह सिखाता है कि सांसारिक वस्तुएं व लौकिक सुख केवल शरीर को तृप्त करते हैं नाकि आत्मा को।

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